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आर्य और काली छड़ी का रहस्य-39

    

    अध्याय-13
    मुकाबला
    भाग-3

    ★★★
    
    अचार्य वर्धन और आर्य दोनों ही तैयार थे। दोनों की लड़ाई अब तेज होने वाली थी। आचार्य वर्धन ने अपनी आंखें बंद की और कुछ मंत्र पढ़े। इन मंत्रों के असर से आर्य को महसूस हुआ कि नीचे की जमीन पर कुछ हलचल हो रही है।
    
     हलचल की वजह से आर्य अपना संतुलन खो रहा था। तभी अचानक जिस जगह पर वह खड़ा था वहां की जगह पर हल्की हल्की दरारें आने लगी, ठीक इसके अगले पल जमीन का वह टुकड़ा जमीन से अलग होकर ऊपर उठ गया। 
    
    यह काली छड़ी का एक ऐसा कदम था जिसमें उसने आर्य को इधर उधर गुलाटी खाने से रोक दिया था। आर्य वैसे भी अब गुलाटी नहीं खाने वाला था लेकिन काली छड़ी को तो अपनी तरफ से यह कोशिश करनी थी। 
    
    जमीन के टुकड़े के हवा में आ जाने के बाद आर्य भी ऊपर हवा में आ गया था। आचार्य वर्धन और आर्य अब दोनों एक दूसरे की समांतर और सापेक्ष थे। दोनों में एक दूसरे के सापेक्ष गति भी हो रही थी जिसमें जमीन का टुकड़ा और अचार्य वर्धन दोनों एक दूसरे के इर्द-गिर्द घूम रहे थे। 
    
    अचार्य वर्धन ने काली छड़ी को सामने किया और फिर काले गोले वाला हमला किया, इस हमले से बचाव के लिए आर्य ने तुरंत अपनी तलवार सामने कर दी। काले गोले का हमला तलवार से टकराया और दूसरी तरफ चला गया।
    
    आचार्य वर्धन झल्लाए और मंत्र पढ़कर अपने दोनों हाथों को हवा में फैला दिया। इससे नीचे वाले फर्श से कई सारे चटानी पत्थर उड़ते हुए ऊपर आ गए। ऊपर आने के बाद वह सब कई सारी दिशाओं से अलग-अलग आर्य की तरफ बढ पड़े। आर्य अपनी स्थिति में बदलाव नहीं कर सकता था, वह कुछ हमलों से जूझता हुआ बचा जबकि कुछ हमले से बचने में‌ वह कामयाब नहीं हो सका। हल्के चटानी पत्थरों ने उसे गहरी चोट दी, और एक बड़े चटानी पत्थर ने उसे नीचे गिरा दिया।
    
    वह जमीन से ठीक-ठाक हो ऊंचाई पर ही था पर फिर भी नीचे गिरने पर उसे चोट लग सकती थी, मगर यहां उसके नीचे गिरने से पहले ही हिना ने अपने शरीर को नीली रोशनी से चमका कर आर्य के इर्द-गिर्द नीले रंग का सुरक्षा चक्कर बना दिया था। इससे आर्य जमीन पर सुरक्षित उतरा।
    
    नीचे उतरते ही दोनों की एक-दूसरे से नजरें मिली और आर्य ने आंखों ही आंखों से हिना को धन्यवाद कहा। 
    
    आचार्य वर्धन ने हिना और वहां खड़े आयुध और आचार्य को गुस्से से भरी नजरों से देखा। इसके बाद उन्होंने छड़ उनकी ओर की जिसके ठीक उपरांत उन तीनों के ही सामने जमीन पर उठते हुए काले धुएं के साथ तीन अलग-अलग अचार्य वर्धन खड़े हो गए थे।
    
    वह तीनों ही अचार्य वर्धन असली वाले आचार्य वर्धन की प्रतिकृति थे। भयानक और भयावहक दिखने वाले अचार्य वर्धन की प्रतिकृति। 
    
    तीनों ही अपने सामने तीन अचार्य वर्धन को खड़े देख कर चोक्कने हो गए। हिना ने अपने शरीर को नीली रोशनी से चमका लिया, वही आचार्य ज्ञरक ने आयुध को आचार्य वर्धन की सफेद रोशनी वाली छड़ देते हुए उसका हाथ पकड़ लिया। वह दोनों एक साथ अपनी छड़ी से एक जैसे हमले कर सकते थे। और इसके लिए आयुध को किसी तरह के मंत्र पढ़ने की आवश्यकता भी नहीं थी।
    
    आर्य ने एक बार के लिए जमीन पर काले धुएं के साथ पैदा हुए तीन अलग-अलग अचार्य वर्धन को देखा इसके बाद वह अपनी जगह पर सावधान होते हुए असली वाली आचार्य बदल के अगले हमले का इंतजार करने लगा।
    
    असली वाले आचार्य ने भी हिना आयुध और आचार्य ज्ञरक को उनके हाल पर छोड़ दिया और खुद आर्य की तरफ हो गए। अभी तक उन्होंने किसी भी तरह के बड़े हमले का इस्तेमाल नहीं किया था। 
    
    आचार्य वर्धन ने अगला हमला किया। एक बार फिर से उन्होंने हमले के लिए उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मंत्र पढ़कर छड़ी को सामने की तरफ हो कर दिया। छड़ी से काले रंग वाली बिजली निकली, जिससे बचने के लिए आर्य ने अपने पास मौजूद एकमात्र सुरक्षात्मक चीज रोशनी वाली तलवार को सामने कर दिया। बिजली का प्रतिकार हुआ तो सारी बिजली तलवार से टकराने के बाद नीचे जमीन की तरफ जाने लगी।‌कुछ देर तक हमला करने के बाद आचार्य वर्धन का बिजली वाला हमला खत्म हो गया। यह उनकी एक ना कामयाब होने वाली कोशिश थी। नाकामयाबी को देखकर उनका गुस्सा झल्लाहट में बदलने लगा था। 
    
    अपनी इस झल्लाहट में उन्होंने खुद को और ताकतवर कर लिया। उन्होंने ऊपर हवा में कुछ मंत्र पढ़े और अपने दोनों हाथों को अपने कंधों से लगाया। ऐसा करते ही उनके शरीर ने अपने इर्द गिर्द लहरदार धुएं के साथ बढ़ना शुरू कर दिया था। यानी कि अचार्य वर्धन आकार में बड़े हो रहे थे।
    
    जैसे जैसे वह आकार में बड़े हो रहे थे वैसे वैसे उनका रूप भी और खतरनाक होता जा रहा था। उनके शरीर के इर्द गिर्द वाले धुएं में अजीब सी चमक भी थी, जो हॉल में आंखों को चौंधिया देने वाले थी। उसकी वजह से कभी देखने और कभी ना दिखने वाले दृश्यों का निर्माण हो रहा था। 
    
    आर्य को साफ दृश्य देखने के लिए अपनी आंखों को केंद्रित कर पुतलियों को सिकोड़ना पड़ा। जल्द ही अचार्य वर्धन के शरीर का बड़ा होना रुक गया। 
    
    जब अचार्य वर्धन का शरीर पूरी तरह से बड़ा हो गया तब वह अगले हमले की तैयारी करने लगे। अबकी बार आर्य उनके बड़े शरीर में कमर तक आ रहा था तो उसने भी अपनी तरफ से बरतने वाली सावधानी को दोगुना कर दिया। इस बात की पूरी संभावना बन गई थी कि अब काली छड़ी ऐसे मंत्र का इस्तेमाल करेगी जिसका तोड़ और किसी के पास ना हो। और अगर ऐसा कुछ होता है तो आर्य अपनी तरकीब को आजमा सकता था।
    
    आचार्य वर्धन ने सामने से मंत्र पढ़े और छड़ी सामने की। इस हमले में छड़ी से चार अलग-अलग तरह की तरंगों से बना गोला निकला। आर्य गोले को देखते ही समझ गया यह एक बड़ा हमला है।
    
    उसने खुद को और नीचे कर लिया, पीछे वाले पैर को जमीन से लगा दिया, जबकि आगे वाले पैर को थोड़ा सा मोड़ दिया। इसके ठीक बाद गोला आकर तलवार से टकरा गया। चार तरंगों से बने गोले में तीन तरंगे तो पहले वाली ही थी, यानी लहरदार बिजली, काली रंग की रोशनी, सफेद रोशनी, जबकि चौथी तरंग के रूप में लाल रंग की वलयकार रोशनी शामिल थीं। इस वलयकार रोशनी ने तीनों ही तरंगों को अपनी सुरक्षा में ले रखा था। यानी कि यह रोशनी सभी तीनों तरंगों के इर्द-गिर्द घूम कर हमले में साथ दे रही थी।
    
    पूरे हमले के तलवार पर आ जाने के बाद तलवार पर दबाव बढ़ गया। दवाब बढ़ते ही तलवार ने सफेद रोशनी से चमकना शुरू कर दिया। आर्य तलवार के इस दबाव को महसूस कर रहा था। 
    
    तलवार की चमक बढ़ने के कुछ क्षण बाद उसका शरीर भी सफेद रोशनी से चमकने लगा। आर्य महसूस कर रहा था कि तलवार के दवाब के साथ साथ अबकी बार उसके शरीर में भी एक अलग तरह का दबाव पैदा हो रहा है। यानी सामने वाला हमला उस पर भारी पड़ रहा था। आर्य ने उसी वक्त अपनी तरकीब पर काम करने की सोची।
    
    उसने तलवार को तिरछा किया और पूरे हमले को दूसरी तरफ परावर्तित कर दिया। हमले के परावर्तित होते ही उस पर आया दबाव कम हो गया। आर्य ने अपनी तेज गति वाली क्षमता का इस्तेमाल किया और तेजी से दिशा बदल कर उस दिशा में चला गया जहां पर अब हमला आ रहा था।
 
    वहां पहुंचते ही उसने वापस अपनी तलवार सामने कर दी। जैसे ही हमला तलवार से टकराया उसने तलवार को तिरछा कर अचार्य वर्धन की ओर मोड़ दिया। 
    
    अचार्य वर्धन आर्य को यह करता हुआ देख चुके थे, मगर यह जो भी हो रहा था वो काफी तेज था। आर्य का अपनी जगह पर हमला रोक कर, उसकी दिशा बदल कर दूसरी जगह पर जाना, फिर वहां से हमले को बदल कर वापिस उसकी और कर देना, यह सब तात्क्षणिक हुआ था। 
  
    हमला लगातार आचार्य वर्धन की ओर आ रहा था। आचार्य वर्धन बिना किसी प्रतिक्रिया के उसे अपनी ओर आते हुए देख रहे थे। आचार्य वर्धन काली छड़ी का नेतृत्व कर रहे थे, इस वक्त काली छड़ी हमले को अपनी ओर आते हुए देख रही थी।
    
    तभी अचानक आचार्य वर्धन ने अपनी आंखें बंद की, आंखें बंद करने के बाद उन्होंने तेजी से अपने हाथ जोड़े, जहां छड़ी भी सामने की तरफ आ गई और फिर देखते ही देखते सब कुछ शांत हो गया। 
    
    आचार्य वर्धन की प्रतिक्रिया भी एक तात्क्षाणिक प्रतिक्रिया थी। बस उन्होंने पल भर के लिए हमले को अपनी ओर आते हुए देखा और फिर पलभर में ही आंखें बंद कर हाथ जोड़कर अपनी यह वाली प्रतिक्रिया कर दी।
    
    आर्य अपने आसपास की शांति देखकर पूरी तरह से चौंक गया। यह हूबहू वैसा ही था जैसा कुछ देर पहले उसके साथ रुके हुए समय के दौरान हुआ था। इस शांति में आसपास की सब चीजें थम चुकी थी। शिवाय आर्य के। सामने के आचार्य वर्धन भी थम चुके थे। 
    
    आर्य अकेला ही रुके हुए समय में खड़ा था। उसने पीछे मुड़कर देखा तो वहां हिना आयुध और अचार्य ज्ञरक भी थमे हुए थे। आचार्य वर्धन की तरह दिखने वाले तीन आचार्य भी थमें हुए थे। वह समझ नहीं पा रहा था कि अब यह आखिर क्या हुआ। उसने जो योजना बनाई थी उसके हिसाब से तो यहां हमले को छड़ी से टकराना चाहिए था। हमले के छड़ी से टकराने के बाद उसे खत्म हो जाना चाहिए था। लेकिन अभी जो हुआ है यह बिल्कुल अलग था। यहां तक कि उसने इस बारे में कल्पना भी नहीं की थी।
    
     इस घटना उसे बिल्कुल किसी नए मोड़ की तरह हैरत में डाल रखा था। इससे पहले वह इस बारे में और सोचता अचानक उसे खाली जगह से एक आवाज सुनाई दी। “अपनी आंखें बंद करो......” आर्य इस आवाज को पहचानता था। यह वही आवाज थी जो अचार्य वर्धन की आवाज में किसी मिश्रित बूढ़ी औरत की आवाज के रूप में उसे सुनाई दे रही थी। तब आवाज कर्कश, अहंकार से भरी, और सामने वाले को नीचा दिखाते हुए थे। जबकि अबकी बार जो आवाज आई थी उस में दर्द था, एक अलग तरह का कष्ट, ऐसा कष्ट जो किसी को ठीक मरने से पहले आता है।
    
    आवाज ने दोबारा कहा “मैं जानती हूं तुम इस वक्त हैरान हो। तुम्हारे सामने यह सवाल है कि तुम्हारे साथ अब क्या होने वाला है। लेकिन यकीन मानो... यह खतरनाक नहीं है। यह सिर्फ तुम्हारे भले के लिए है। तुम्हारे भले के लिए और आचार्य वर्धन के भले के लिए। तुम्हारे इस पूरे आश्रम के भले के लिए। मैं काली छड़ी हूं जो तुमसे संवाद करना चाहती हूं। मुझे तुमसे एक सौदा करना है।”
    
    आर्य ने यह सुनते ही स्पष्ट शब्दों में कहा “मगर मुझे तुमसे कोई सौदा नहीं करना। मुझे ना तो तुम से सौदा करना है ना ही तुमसे कोई बात करनी है। मुझे बस सब चीजें सही करनी है।”
    
    कर्कश आवाज ने जोर भरा मगर वह अभी भी कष्ट में थी। “लेकिन सब सही करने के लिए संवाद का होना जरूरी है। बिना संवाद के मैं कुछ भी नहीं कर सकती। मुझे इसी तरीके से काम करने के लिए बनाया गया है। कुछ भी करने से पहले बातचीत और सौदेबाजी जरूरी है।”
    
    “सौदेबाजी!!” आर्य ने इस शब्द को पकड़ा “सौदेबाजी की वजह से आज हालात यहां तक आ गए, और तुम्हें लगता है इतना कुछ होने के बाद मैं तुमसे सौदेबाजी करूंगा।”
    
    “नहीं तुम गलत सोच रहे हो।”‌ काली छड़ी की कर्कश आवाज ने कहा “सौदेबाजी तुम नहीं करोगे बल्कि मैं करूंगी। अब तक सब अपनी तरफ से पहल करते हुए मुझसे ही सौदेबाजी करने आए हैं, लेकिन आज हालात ऐसे हो गए हैं कि मुझे सौदेबाजी की पेशकश करनी पड़ रही है।”
    
    आर्य इस बात को समझ नहीं पाया था। उसने कहा “तुम मुझसे सौदेबाजी करोगी.... मैं ठीक से समझा नहीं। आखिर तुम कहना क्या चाहती हो और तुम्हारी इरादे क्या है?”
    
    “मैं तुम्हें सब बता दूंगी।” आर्य को लगा इस बार कर्कश आवाज उसके कुछ ज्यादा ही करीब है। “मगर तुम अपनी आंखें बंद करो, और अपनी आंखें बंद करने के बाद मुझसे आमने-सामने संवाद करो। हम बिल्कुल इत्मीनान से बात करेंगे।”
    
    आर्य असमंजस में था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस वक्त उसे क्या करना चाहिए। वह आंखें बंद करें या नहीं? लेकिन अगर उसने आंखें बंद नहीं की तो अभी जो हो रहा है उसका परिणाम नहीं मिलेगा। अगर आंखें बंद की तो पता नहीं क्या होगा... शायद जो होगा वह कम से कम घटना क्रम को आगे तो बढ़ाएगा। आर्य ने यह सोचा और हिचकिचाते हुए अपनी आंखें बंद कर ली। आंखें बंद करते ही अचानक उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वह कहीं किसी और ही जगह की ओर खींचा जा रहा है... और फिर पलक झपकते ही....छु.... आर्य एक निर्जीव शरीर की तरह जमीन पर गिर गया।
    
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